बुधवार, 5 अगस्त 2015

बुद्धि और विवेक एक दूसरे के विपरीत है : भगवान श्री कृष्णा

बुद्धि और विवेक दो समान अर्थ वाले शब्द लगते हैं, लेकिन स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने इसका विस्तार से वर्णन करते हुए बताया है कि बुद्धि और विवेक एक दूसरे के विपरीत है ।
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श्रीमद भगवत गीता में इसका कोई स्पष्ट वर्णन नहीं है, परन्तु एक रोचक कथा कृष्ण-अर्जुन संवाद के बारे में मैंने सुनी है । इसे कई मित्रों को प्रसंग वस साझा भी किया है । कथा इस प्रकार है कि
" महाभारत का युद्ध आरम्भ होने को था । अर्जुन को भगवान श्री कृष्ण ने अपना विराट रूप दर्शन करवाया और पूछा, हे नर श्रेष्ठ कोई और प्रश्न ? अर्जुन ने शांत भाव से करबद्ध प्रार्थना करते हुए श्री कृष्ण से कहा कि बस मेरे अंतिम प्रश्न का उत्तर दे दीजिये । भगवान मुस्कुराते हुए बोले पूछो, क्या जानना चाहते हो ! अर्जुन ने कहा, प्रभु जब आप सब कुछ जानते हो, अंतर्यामी हो, भविष्य द्रष्टा हो फिर तो आप मेरे मन के प्रश्न और व्याकुलता को भी पहले हैं जान गए होंगे । परन्तु आपने मेरे पहले हीं प्रश्न पर सबकुछ क्यों नहीं बता दिया ?
भगवान समझ गए कि अब अर्जुन को सही उत्तर बताने का समय आ गया है । श्री कृष्ण मुस्कुराते हुए बोले, हे अर्जुन मनुष्य के मन का सञ्चालन दो दिशाओं में होता है । जब उसकी बुद्धि काम करती है तो वह स्वयं को श्रेष्ठ मानते हुए अन्य सबको तुक्ष समझने लगता है और धीरे-धीरे विवेक पूर्ण निर्णयों से कब दूर हो जाता है उसे पता भी नहीं चलता । अधिकांश मानव जीवन के अंतिम समय में भी यह नहीं समझ पाते कि उनके किस निर्णय ने उनका जीवन कष्टप्रद बना दिया और उस निर्णय के समय वह विवेक शुन्य हो गया था ।
भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को स्नेह करते हुए बताया कि स्मरण रखो कि बुद्धि और विवेक दोनों विपरीत दिशा के गामी हैं । जिस समय तुम्हारी बुद्धि काम करती है उस समय तुम स्वकेंद्रित सोचते हो और जिस समय तुम विवेक से निर्णय लेते हो उस समय तुम परोपकार की भी सोचते हो । यह मैं और हम जैसा है । हे अर्जुन अब तक तुम बुद्धि से प्रश्न कर रहे थे और यह तुम्हारा अंतिम प्रश्न विवेक पर आधारित था ।
सामान्य मानव भी तुम्हारी तरह ही होता है इसीलिए मैंने तुम्हारे सरे प्रश्नों का उत्तर दिया । जब भी किसी को दुविधा हो वह तुम्हारे किये हुए प्रश्नो को और मेरे उत्तर का अध्ययन करे वह विवेकी हो जायेगा ।
राजीव पाठक

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