पूर्वोत्तर भारत का एक छोटा सा राज्य है मेघालय. समय के साथ मेघालय का मौसम भी बदल गया है किन्तु पुराने लोग कहते है कि मेघालय को मेघ से ढके होने के कारण पहले देख पाना कठिन होता था. परिस्थिकिये बदलाव के बावजूद आज भी वर्ष भर यहाँ ठंठ रहती है. विश्व का सर्वाधिक वर्षा का क्षेत्र चेरापूंजी भी मेघालय के राजधानी शिलोंग के नजदीक ही है. कई विदेशी यात्रियों ने इसे स्विट्जर्लैंड से भी सुन्दर बताया है. सायद यही कारण है कि अंग्रेजो ने अपनी राजधानी गुवाहाटी नहीं शिलोंग बनाया.
मेघालय कि प्रमुख जनजातियाँ गारो,खासी और जयंतिया है. इन जनजातियों के नाम पर ही मेघालय के पहाड़ो और भाषाओँ के नाम हैं. कठिन भौगोलिक संरचना के कारण अभी भी बहुत विकास नहीं हुआ है. लेकिन पनबिजली, कोयला, चुनापथ्थर और वनस्पति यहाँ के लोगों को प्रकृति की अनमोल देन है. मेघालय की राजधानी शिलोंग गुवाहाटी से महज सौ कि.मी. कि दूरी पर है. गुवाहाटी से दिन भर बसे और छोटे वाहन आसानी से मिल जाते है.
भारत के अन्य भागों से सतत संपर्क नहीं रहने के कारण लोग जनजातिय भाषा या अंग्रेजी का उपयोग करते है. किन्तु नई पीढ़ी हिंदी बोलते और समझते है.युवा, भारत के विभिन्न शहरों में जाकर पढाई कर रहे है.जिसका साकारात्मक प्रभाव दीखता है. यह विडम्बना ही है कि पिछले चार दशक में अधिकांश जनजातियों को धर्मान्तरित कर दिया गया है, जिसके कारण उनकी मूल पहचान मिट रही है और पाश्चात्य प्रभाव हावी दीखता है. सेवा और शिक्षा के नाम पर धर्मान्तरण का यह शाजिश कमोबेस पूरे पूर्वोत्तर में है.
पूर्वोत्तर भारत और मेघालय के लिए केंद्र सरकार कि विविध योजनाओ से स्थानीय लोग अनभिज्ञ है. पैसा आता तो है, परन्तु उसका सदुपयोग नहीं हो पाता. लोग शिक्षा, स्वस्थ्य जैसे मूलभूत आवश्यकताओं से अभी भी वंचित है.
लेकिन मेघालय कुछ मामलों में पूरे देश के लिए मिशाल है. मेघालय का समाज मात्री प्रधान समाज है. महिलाये रोजगार,शिक्षा और अन्य सामाजिक गतिविधियों के अलावे व्यवसाय में भी आगे है. लोग मेहनती, इमानदार और भोले-भाले है. शिलोंग से बीस कि.मी. कि दूरी पर बसा 'मवलीनोंग' नाम का एक गाँव एसिया का सबसे स्वक्छ गाँव है. यह प्रयाश वहा के लोगों का ही है. वर्ष भर वर्षा होने के बावजूद इस गाँव में एक भी मच्छर नहीं है. लोगो के इस प्रयाश के कारण ही सरकार ने इस गाँव को पक्की सड़क से जोड़ दिया है. गाँव वालो ने अतिथियों के लिए बांस के दो खुबसूरत गेस्ट हॉउस तैयार किये है. खासी जनजाति के लोगों ने शेंग-खासी नाम से एक स्वयं सहायता समूह बनाया जिसके आज कई विद्यालय और सेवा प्रकल्प चल रहे है.
ऐसी मान्यता है कि शिलोंग 'शिवलिंग' शब्द का ही अपभ्रंश है. जिसका प्रमाण कुछ ही दिन पहले गुफा के अन्दर मिले विशाल शिवलिंग से भी मिलता है. हिमालय के गोद में बसा यह प्रदेश वाकई प्रकृति का वरदान है. जहाँ एक नहीं दर्जनों मसूरी और नैनीताल आपको दिखेंगे. धरती का स्वर्ग है पूर्वोत्तर भारत......अतुल्य है पूर्वोत्तर भारत.......
राजीव पाठक
पूर्वोत्तर भारत
मेघालय कि प्रमुख जनजातियाँ गारो,खासी और जयंतिया है. इन जनजातियों के नाम पर ही मेघालय के पहाड़ो और भाषाओँ के नाम हैं. कठिन भौगोलिक संरचना के कारण अभी भी बहुत विकास नहीं हुआ है. लेकिन पनबिजली, कोयला, चुनापथ्थर और वनस्पति यहाँ के लोगों को प्रकृति की अनमोल देन है. मेघालय की राजधानी शिलोंग गुवाहाटी से महज सौ कि.मी. कि दूरी पर है. गुवाहाटी से दिन भर बसे और छोटे वाहन आसानी से मिल जाते है.
भारत के अन्य भागों से सतत संपर्क नहीं रहने के कारण लोग जनजातिय भाषा या अंग्रेजी का उपयोग करते है. किन्तु नई पीढ़ी हिंदी बोलते और समझते है.युवा, भारत के विभिन्न शहरों में जाकर पढाई कर रहे है.जिसका साकारात्मक प्रभाव दीखता है. यह विडम्बना ही है कि पिछले चार दशक में अधिकांश जनजातियों को धर्मान्तरित कर दिया गया है, जिसके कारण उनकी मूल पहचान मिट रही है और पाश्चात्य प्रभाव हावी दीखता है. सेवा और शिक्षा के नाम पर धर्मान्तरण का यह शाजिश कमोबेस पूरे पूर्वोत्तर में है.
पूर्वोत्तर भारत और मेघालय के लिए केंद्र सरकार कि विविध योजनाओ से स्थानीय लोग अनभिज्ञ है. पैसा आता तो है, परन्तु उसका सदुपयोग नहीं हो पाता. लोग शिक्षा, स्वस्थ्य जैसे मूलभूत आवश्यकताओं से अभी भी वंचित है.
लेकिन मेघालय कुछ मामलों में पूरे देश के लिए मिशाल है. मेघालय का समाज मात्री प्रधान समाज है. महिलाये रोजगार,शिक्षा और अन्य सामाजिक गतिविधियों के अलावे व्यवसाय में भी आगे है. लोग मेहनती, इमानदार और भोले-भाले है. शिलोंग से बीस कि.मी. कि दूरी पर बसा 'मवलीनोंग' नाम का एक गाँव एसिया का सबसे स्वक्छ गाँव है. यह प्रयाश वहा के लोगों का ही है. वर्ष भर वर्षा होने के बावजूद इस गाँव में एक भी मच्छर नहीं है. लोगो के इस प्रयाश के कारण ही सरकार ने इस गाँव को पक्की सड़क से जोड़ दिया है. गाँव वालो ने अतिथियों के लिए बांस के दो खुबसूरत गेस्ट हॉउस तैयार किये है. खासी जनजाति के लोगों ने शेंग-खासी नाम से एक स्वयं सहायता समूह बनाया जिसके आज कई विद्यालय और सेवा प्रकल्प चल रहे है.
ऐसी मान्यता है कि शिलोंग 'शिवलिंग' शब्द का ही अपभ्रंश है. जिसका प्रमाण कुछ ही दिन पहले गुफा के अन्दर मिले विशाल शिवलिंग से भी मिलता है. हिमालय के गोद में बसा यह प्रदेश वाकई प्रकृति का वरदान है. जहाँ एक नहीं दर्जनों मसूरी और नैनीताल आपको दिखेंगे. धरती का स्वर्ग है पूर्वोत्तर भारत......अतुल्य है पूर्वोत्तर भारत.......
राजीव पाठक
पूर्वोत्तर भारत
bahoot badhiya prastuti
जवाब देंहटाएंkripaya bans wale ghar ke photo bheje.
जवाब देंहटाएंKanhaiya
9958806745
रोचक जानकारी!
जवाब देंहटाएंपर्यटकों के लिए क्या मेघालय जाना इन दिनों ठीक है? उग्रवादियों ने वहां के व्यवसाय पर असर तो नहीं डाला?
जवाब देंहटाएंthanks...for giving an informative ....notes
जवाब देंहटाएंbhai sahab apne lekho chalu rakhiye, agli baar mizoram, hamen intazaar hai
जवाब देंहटाएंअभिनव प्रयास। चलिए कम से कम कोई तो ऐसा है जो पूर्वोत्तर पर लिख रहा है। हिंदी में इस तरह का प्रयोग वाकई ब्लाग जगत को समृद्ध बनाएगा। लिखते रहिए। मेरी शुभकामनांए।
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