सोमवार, 9 अगस्त 2010

काहे का स्वतंत्रता दिवस.......दिखे तो मने ना.......

                                                15 अगस्त नजदीक है.लालकिला फिर से सजेगा....दिल्ली में पतंगे उडेंगी...देश भर में जस्न होगा...प्रधानमंत्री लालकिला से भारत के बुलंदी के कसीदे पढेंगे....लेकिन भारत कही कराह रहा होगा..दुबका होगा....डरा और सहमा भी होगा....क्यों कि 15 अगस्त उसके लिए मुसीबत लेकर आता है.
जी, बात पूर्वोत्तर भारत की. अभी अगस्त शुरु ही हुआ है.....यहाँ अभी से सब कुछ सामान्य नहीं लगता. गुवाहाटी से आगे जाने वाली सभी ट्रेने सूरज की रौशनी में ही चल रही है...कई ट्रेने 15 अगस्त तक के लिए निरस्त कर दी गई है. रेल कर्मचारियों से पूछने पर पता चला कि ये सामान्य बात है..हर साल होता है..सो इस बार भी हो गया. मैंने पूछा कि किसी उग्रवादी संगठन का धमकी है क्या?...जबाब मिला नहीं...अब आने ही वाला होगा....इसलिए हम पहले ही सचेत है.
ये हाल कामो-बेश पूरे पूर्वोत्तर का है....बसे बंद...दुकाने बंद.......पट्रोल पम्प बंद...... क्यों कि 15 अगस्त आने वाला है!
समझना मुस्किल हो जाता है कि 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस है या शोक दिवस!
बंद देने वाले कौन है ये सरकार भी जानती है. लोगों को भयभीत करने का मूल मकसद देश के प्रति अविस्वाश पैदा करना है...भारत के सरकार से ज्यादा समर्थबान खुद को साबित कर सके, जिसका प्रमाण है पिछले साल  असम में पाकिस्तानी झंडा लहराया जाना.
बच्चे अपने माता-पिता से पूछते है कि दिल्ली के लालकिला जैसा हमारे स्कुल में कार्यक्रम क्यों नहीं होता....पिता जी जवाब देते है बच्चे वो दिल्ली है.....यह दिल्ली नहीं है.......
घरों में सहमे लोग भगवन से प्रार्थना करते है कि 15 अगस्त सकुशल बीत जाय....सोचिये स्वतंत्रता का मायने इनके लिए क्या है.
लेकिन पूर्वोत्तर का एक और चेहरा है जो आपको अरुणाचल में दिखेगा...15 अगस्त यहाँ वैसे ही मानता है जैसे दिल्ली में...बल्कि कई मायनो में उससे भी बेहतर...स्कूली बच्चे एक दिन पहले अपने स्कुल और आस-पास कि सफाई करते है. पर्व कि तरह सजाया जाता है.और उत्साह पूर्वक स्वतंत्रता दिवस मानता है.
अरुणाचल प्रदेश के इस अनुकूलता का राज है...घुसपैठ का न होना..तथा लोगों में हिंदी के प्रति स्नेह....भारतीय सेना कि पहुच...देश कि समस्याओं के साथ एक मत. यही कारण है कि चीन के बने हुए सामान का सबसे ज्यादा विरोध अरुणाचल में है.चीन के नीतियों कि भर्त्सना बसे अधिक अरुणाचल वासी ही करते है.
भारत कि स्वतंत्रता अक्षुण रहे इसके लिए घुश्पैठ रोकना होगा....घुश्पैठियों को वोट के लालच में पनाह देने वाले नेताओं को सबक सिखाना होगा...और देश कि जनता को एक जुट होना होगा.

राजीव पाठक
पूर्वोत्तर भारत

2 टिप्‍पणियां: