सोमवार, 7 नवंबर 2016

लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा वैश्विक हो गया ।

उदेती सविता ताम्र:
ताम्रामेवाअस्तानमेति च
संपतौ च विपत्तो च 
महताँम एक रूपतः ।
अर्थात : उगता हुआ सूर्य लाल होता है और अस्त होता हुआ भी । ऐसे ही विवेकी मनुष्य को जीवन के सुख और दुःख दोनों समय में समभाव रहना चाहिए ।

वैदिक काल के सूर्य उपासना को लोक पर्व के रूप में स्वयं भगवान राम प्रचलन में लाये ऐसी कथा है। ऐसी मान्यता है कि भगवान राम जिस दिन अयोध्या आये उसके छः दिन बाद अर्थात दीपावली के छठे दिन उन्होंने प्रजा के सुख और समृद्धि के लिए यह व्रत रखा । छठ के बारे में कई अन्य कथाएं भी प्रचलित है । लेकिन सबमें भाव एक ही है, सबके लिए निरोग काया और समृद्धि की कामना । यह पर्व सबके कल्याण और मंगल के लिए है ।
एक कहावत आपने भी कभी कही या सुनी होगी, "डूबते सूर्य को कोई प्रणाम नहीं करता" । लेकिन यहाँ डूबते सूर्य को प्रणाम किया जाता है, इस उम्मीद के साथ कि लंबी अँधेरी रात के बाद पुनः सूर्य का उदय होगा । जीवन सूर्य से है । सूर्य सनातन परंपरा के आदि देव हैं ।
समय बदला तो देश-दुनिया में छठ के प्रति लोगों की जिज्ञासा भी बढ़ी । बिहार केंद्रित यह पर्व सर्वदूर चर्चा में है । भारत के प्रधानमंत्री छठ पर ट्वीट कर बधाई देते हैं, दिल्ली के हर मोहल्ले में छठ पार्क है, मॉरीशस, सूरीनाम ही नहीं कनाडा और रूस में भी छठ करते व्रती अपनी फोटो सोशल मीडिया पर डाल रहे हैं । मैंने खुद पूर्वोत्तर के सुदूर अरुणाचल प्रदेश में छठ का उत्साह और असम के ब्रम्हपुत्र के तट पर छठी मईया के संगीत को सुना है ।
छठ पर्व पूजा से बढ़कर प्रकृति के प्रति संवेदना और सामाजिक समरसता का ताना-बाना है । छठ से पहले नदी, तालाब और घर-खलिहान की सफाई से लेकर मौसम के अन्न और औषधि की पूजा में उपयोगिता आडम्बर से दूर भारत के ग्राम्य जीवन के सादगी का परिचायक है ।
जाति भेद से दूर इस पर्व में सामाजिक विभेद को मिटाने की क्षमता है । सबके मंगल जीवन की कामना वाला छठ पूजा अब सर्वस्पर्शी हो चला है ।

राजीव पाठक
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