शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013

"इस्लाम और हिंदुस्तान"

सैकड़ों अनुसंधानकर्ताओं ने इस तथ्य की पुष्टि की है कि हजरत ईसा के जिंदगी के कई साल भारत में गुजरे थे। इनमें से कुछ उदा0 है- जीसस के भारत में रहने का प्रथम वर्णन 1894 में रुसी निकोलस लातोविच ने किया है। वो 40 बर्षों तक भारत आौर तिब्बत में भटकते रहे, इस दौरान उन्होनें पाली भाषा सीखी और अपने शोध के आधार पर एक किताब लिखी जिसका नाम है ‘दी अननोन लाइफ ऑफ जीसस क्राइस्ट‘ जिसमें उसने ये प्रमाणित किया कि ईसा ने अपने गुमनाम दिन लद्दाख और कश्मीर में बिताये थे। इतना ही नहीं अपने शोध में उन्होंने यह भी लिखा कि उन्होंनें उड़ीसा के जगन्नाथपुरी में जाकर भारतीय भाषायें सीखी और मनुस्मृति, वेद और उपनिषदों का अपनी भाषा में अनुवाद भी किया। लातोविच के बाद रामकृष्ण परमहंस के शिष्य स्वामी अभेदानंद ने 1922 में लद्दाख के होमिज मिनिस्ट्री का भ्रमण किया और उन साक्ष्यों का अवलोकन किया जिससें हजरत ईसा के भारत आने का वर्णन मिलता है और इन शास्त्रों के अवलोकन के पश्चात् उन्होंने ईसा के भारत आगमन की पुष्टि की और बाद में अपने इस खोज को बांग्ला भाषा में प्रकाशित करवाया। एक ईसाई विद्वान लुईस जेकोलियत भी ईसा के भारत आने की पुष्टि करते थे, 1869 में उन्होनें जीसस को श्रीकृष्ण का अवतार बताते हुये एक किताब भी लिखी। यही नहीं 1908 में ‘लेवी एच0 डाव्लिंग ने भी अपने खोज में यही पाया कि जीजस के जीवन के वो भाग जिसका विवरण बाईबिल में नहीं है निःसंदेह भारत में बिताए गये थे। ईसा के गुमनाम जीवन पर अध्ययन करने वाले जर्मन धर्मशास्त्री राबर्ट क्लाईट के मुताबिक बाईबिल के न्यू टेस्टामेंट में ईसा के 13 वें बर्ष से 30 वें बर्ष के जीवन का कोई वर्णन नहीं मिलता इसका कारण ये है कि अपने जीवन की ये अवधि उन्होनें भारत में बिताए और इस दौरान यहां उन्होनें वेद, उपनिषदों और बौद्धधर्मशास्त्रों का अध्ययन किया तथा फिर 30वें बर्ष में भारत लौट आये। वहां लौटकर उन्होनें उन्हीं शिक्षाओं का प्रचार किया जिसका उन्होंने भारत में अध्ययन किया था। 10 वीं सदी के प्रसिद्ध इतिहासकार शैक अल सईद अल सादिक ने अपनी किताब इमकालुद्दीन में उल्लेख किया है कि ईसा ने दो बार भारत की यात्रा की । बाद में मैक्समूलर ने इस ग्रंथ का जर्मन भाषा में अनुवाद किया। कश्मीर के प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफेसर फिदा हुसैन ने ‘ फिफ्थ गास्पेल‘ (पंचम सुसमाचार) नामक अपनी किताब में यही प्रमाणित किया है कि ईसा भारत आये थे और तिब्बत तथा कश्मीर में बौद्ध रीति से कठोर साधनायें की थी। अमेरिकी ईसाई विद्वाव लेवी ने अपनी पुस्तक ‘द एक्वेरियन गास्पेल‘ में ये वर्णित किया है कि ईसा भारत आये थे और बनारस में भारतीय विद्वानों के साथ समय बिताया था। 1925 में निकोलस रोरिर ने भी निकोलस लातोविच के दावों की पुष्टि करने के लिये लद्दाख के होमिज मिनिस्ट्री का भ्रमण किया और पाया कि लातोविच के दावे सत्य थे। अपने अनुभवों को उन्होनेें ‘द हार्ट आॅफ एशिया‘ नामक किताब में कलमबद्ध किया। एक अन्य अमेरिकी विद्वान स्पेंसर ने भी ईसा के गुमनाम जीवन के बारे में यही माना है कि इस अवधि में वो भारत में रहे और साधनायें की। अहमदिया मत के संस्थापक ने भी इस बिषय पर विस्तृत शोध किया है और ये प्रमाणित किया है कि सूलीकरण के बाद ईसा अपनी माँ के साथ भारत आ गये थे और बाद की जिंदगी यही बिताई थी। आज भी कश्मीर के श्रीनगर में रौजाबल नाम से एक मजार है जिसके बारे में ये मान्यता है कि यह हजरत ईसा का कब्र है। लोनली प्लैनेट नामक पत्रिका में इस मजार के बारे में छपने पर यह चर्चा में आया। कश्मीरी विद्वानों ने तो यह भी दावा किया है कि 80 ईसा में कश्मीर में हुये बौद्ध संगीति में ईसा ने भी हिस्सा लिया था। आाधुनिक काल के कई विद्वानों ने भी अपने शोधों में इसकी पुष्टि की है। फिदा हसनैन और देहन लैबी ने अपने किताब में यही लिखा है। हिंदुओं के नाथ संप्रदाय के संन्यासी ईसा को अपना गुरुभाई मानते है क्योंकि उनकी ये मान्यता है ईसा जब भारत आये थे तो उन्होंनें महाचेतना नाथ से नाथ संप्रदाय में दीक्षा ली थी और जब उन्हें सूली पर से उतारा गया था तो उन्होंनें समाधिबल से खुद को इस तरह कर लिया था कि रोमन सैनिकों ने उन्हें मृृत समझ लिया। नाथ संप्रदाय वाले यह भी मानतें हैं कि कश्मीर के पहलगाम में ईसा ने समाधि ली। जर्मन विद्वान होल्गर कर्सटन ने ‘जीसस लीव्ड इन इंडिया नामक किताब में यही बातें लिखी। यह किताब ईसाई जगत की बेस्ट सेलर किताबों में शुमार है और इसने ईसाई जगत में तहलका मचा दी। ये बात सच है कि पवित्र कुरान या हदीस में इस बारे में कुछ स्पष्ट नहीं है पर ये भी सत्य है कि इन ग्रंथों में ईसा के भारत आगमन के विपक्ष में भी कुछ नही है। अलबत्ता कुरान के सूरह मोमिनून की 50 वीं आयत इसका हल्का सा इशारा करती है कि ईसा के जीवन के दिन भारत में गुजरे थे। आयत के शब्द हैं- ‘‘और मरयम के बेटे तथा उसके माता को हमने एक निशानी बनाया तथा उनदोनों को एक ऊँची जगह पर रखा जहाँ ठहराव था और बहता हुआ जलस्तोत्र। ईसा मसीह का जहाँ जन्म हुआ था वह इलाका धरती के सबसे निचले स्थानों में शुमार होता है तो निःसंदेह यह इशारा कश्मीर या लद्दाख के बारे में था जो धरती के सबसे ऊंची जगहों में शुमार किये जातें हैं।

अभिजीत सिंह 



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