बीते अमावश्या को वटसावित्री पूजन था. उत्तर भारत में इस दिन महिलाएं अपने पति के चिरायु के लिए वट वृक्ष का विधिवत पूजन करती है. वटवृक्ष में धागे लपेटती, गले मिलते और नैवेद्य जल चढाते चटकदार रंग की कपड़ों में आपको महिलाएं किसी गाँव के सबसे पुराने वटवृक्ष के नीचे उस दिन जरुर मिल जाएँगी.
इस पूजन का पौराणिक कथा हम सब जानते है जिसमे सावित्री यमराज से अपने पति का प्राण वापस ले आती है. लेकिन इसका कुछ वैज्ञानिक आधार भी है, साथ ही पर्यावरण और वृक्ष के संरक्षण में इस प्रकार के त्यौहार यदि सहायक है तो हमारे पूर्वजों की दूरदर्शिता भी इससे स्पष्ट होती है जिन्होंने प्रकृति के संरक्षण हेतु आस्था को आधार बनाया ताकि भावना वस ही सही लोग इसे जीवन से जोड़े रखें. निश्चय ही गर्व करना चाहिए हमें अपने पूर्वजों की वैज्ञानिक दूरदर्शिता पर.
जी हाँ... तो बताना ये था मुझे कि भारतीयता कि पहचान यदि हमें देनी हो तो भला हमारी सांस्कृतिक पहचान से ज्यादा क्या हो सकता है. और हम भारतियों की यह विशेषता है कि हम अपनी पहचान बनाये रखने में गर्व महसूस करते है. कुछ-एक ही अपवाद होंगे जिन्हें अपने पहचान छुपाने में गर्व होता है.खुद को भारतीय कहलाने में शर्म आती होगी.
लेकिन, अमेरिका में रह रही अंशु वट सावित्री पूजा को कितनी श्रद्धा के साथ मनाई ये उनके तस्वीर में आप देख रहे होंगे. वटवृक्ष (बरगद) का पेड़ नहीं मिला तो अंशु वटवृक्ष के चित्र को ही सामने रख लीं. पूजा की भावना वही थी और उत्साह भी वही. महीनो बाद भी जैसे भारत की पवित्रता उनमे वैसी की वैसी ही है. हो भी क्यों ना अंशु को गर्व है अपने परिवार अपने गाँव और अपने भारतीयता के प्रति. कितनी ख़ुशी होती है जब हम किसी अपने को अपने जैसा देखते है भले ही वो हम से हजारों कोस दूर हो.
वास्तव में भारत की सनातनी संस्कृति सर्वश्पर्शी,सर्वग्राही और चिरंतन है जिसमे आधुनिकता को अपने में मिलाने और पौराणिकता को बचाए रखने की शक्ति है. भारत के बाहर जा रहे शिक्षित युवाओं को कम से कम इस सांस्कृतिक पहचान को अपनाये और बचाए रखने का मन तो बनाना ही चाहिये.
इस पूजन का पौराणिक कथा हम सब जानते है जिसमे सावित्री यमराज से अपने पति का प्राण वापस ले आती है. लेकिन इसका कुछ वैज्ञानिक आधार भी है, साथ ही पर्यावरण और वृक्ष के संरक्षण में इस प्रकार के त्यौहार यदि सहायक है तो हमारे पूर्वजों की दूरदर्शिता भी इससे स्पष्ट होती है जिन्होंने प्रकृति के संरक्षण हेतु आस्था को आधार बनाया ताकि भावना वस ही सही लोग इसे जीवन से जोड़े रखें. निश्चय ही गर्व करना चाहिए हमें अपने पूर्वजों की वैज्ञानिक दूरदर्शिता पर.
जी हाँ... तो बताना ये था मुझे कि भारतीयता कि पहचान यदि हमें देनी हो तो भला हमारी सांस्कृतिक पहचान से ज्यादा क्या हो सकता है. और हम भारतियों की यह विशेषता है कि हम अपनी पहचान बनाये रखने में गर्व महसूस करते है. कुछ-एक ही अपवाद होंगे जिन्हें अपने पहचान छुपाने में गर्व होता है.खुद को भारतीय कहलाने में शर्म आती होगी.
लेकिन, अमेरिका में रह रही अंशु वट सावित्री पूजा को कितनी श्रद्धा के साथ मनाई ये उनके तस्वीर में आप देख रहे होंगे. वटवृक्ष (बरगद) का पेड़ नहीं मिला तो अंशु वटवृक्ष के चित्र को ही सामने रख लीं. पूजा की भावना वही थी और उत्साह भी वही. महीनो बाद भी जैसे भारत की पवित्रता उनमे वैसी की वैसी ही है. हो भी क्यों ना अंशु को गर्व है अपने परिवार अपने गाँव और अपने भारतीयता के प्रति. कितनी ख़ुशी होती है जब हम किसी अपने को अपने जैसा देखते है भले ही वो हम से हजारों कोस दूर हो.
वास्तव में भारत की सनातनी संस्कृति सर्वश्पर्शी,सर्वग्राही और चिरंतन है जिसमे आधुनिकता को अपने में मिलाने और पौराणिकता को बचाए रखने की शक्ति है. भारत के बाहर जा रहे शिक्षित युवाओं को कम से कम इस सांस्कृतिक पहचान को अपनाये और बचाए रखने का मन तो बनाना ही चाहिये.
very good :)
जवाब देंहटाएंसादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक लेख | यही हमारी संस्कृति कि मूल विशेषता है कि हम कण कण में भगवान का दर्शन करते हैं |
रत्नेश त्रिपाठी
muja app se ya hi umdee thi . bhut accha
जवाब देंहटाएंbahut hi acchi jankari.......hame garv hota hai apne aise pravasi bhai behno par....
जवाब देंहटाएंअंशु पर गर्व है|
जवाब देंहटाएंbahut khub my sweet didi and RAJEEV....
जवाब देंहटाएंIt was nice to see rajeev pathak putting the one of the festival of women which is lossing its diginity in the major part of north bihar becoz of less time.keep going rajeev all the best.
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