बुधवार, 19 नवंबर 2014

स्वयं से प्रेरणा लेता हूँ : संतोष

संतोष कुमार राय कुछ ही दिनों बाद किसी एक जिला के सबसे बड़े अधिकारी होंगे. वर्ष 2013 के सिविल सर्विस परीक्षा में हिंदी माध्यम से प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले संतोष के मन में पहली बार आई.ए.एस. बनने का ख़याल जिस उम्र में आया, अमूमन वह उम्र खेलने-कूदने का होता है. बिहार के समस्तीपुर जिले के एक अत्यंत पिछड़े गांव में पले-बढ़े संतोष के बालक मन पर अपने बड़े-बूढ़ों से कलेक्टर साहब के बारे में सुनने पर यह लगता था कि वही सबसे बड़े अधिकारी होते हैं. वो चाहें तो सबकुछ ठीक हो सकता है. संतोष ने भी संकल्प लिया कि बनना है तो बस आई.ए.एस.

मुझसे सहज बातचीत करते हुए श्री संतोष राय ने बताया कि लगातार दस वर्ष तक उन्होंने रात-दिन एक ही सपना देखा जो आज साकार हो चुका है. संतोष ने एक ऐसे गावं से स्कूली शिक्षा प्राप्त की जहां आज भी शिक्षकों की कमी है. उस गावं में न तो पक्की सड़क है और न ही बिजली. गावं के लोग संतोष के उत्तीर्ण होने पर इस उम्मीद में हैं कि अब उनका भी दिन बदलेगा.

संतोष अभी ट्रेनिंग में हैं. अनुभव विस्तार के लिए कुछ दिनों के लिए उन्हें उत्तर प्रदेश के एक जिला अधिकारी के पास भेजा गया था. मसूरी लौटते समय जब हम दिल्ली में उनसे बातचीत कर रहे थे उस वक्त भी संतोष राय ने कुछ स्कूली बच्चों से अपने बीते दिनों के अनुभव को साझा किया. आई.ए.एस. बनने का तो मेरे बचपन का स्वप्न था; लेकिन, अब 30 साल की उम्र में ही मेरा सपना पूरा हो सका. मेरी कहानी किसी फिल्म की पटकथा से कम नहीं है. यहाँ सब कुछ है - सपने, संघर्ष, कदम-दर-कदम लक्ष्य का ओर बढ़ना, कुछ तीर निशाने पर; तो कभी मायूसी और अंत में वांछित लक्ष्यों को पाने का सुखद अनुभव.

मैं ग्रामीण पृष्ठभूमि से संबंध रखता हूँ और अपर्याप्त संसाधनों के कारण जीवन में सुख-आराम की चीज़ों एवं उन्मुक्त वातावरण से वंचित ज़रूर रहा था ; लेकिन, किसी के सामने कभी नीचा महसूस नहीं किया और न ही किसी से कम. सदैव इस विश्वास के साथ जिन्दगी में आगे बड़ा हूँ कि भगवान ने जो सभी दिया गया है वह मुझे भी दिया है; अगर, कुछ कमी है भी तो वह सब पाने के लिए कठिन प्रयास करूँगा.

हम में से हर एक की कुछ शक्तियों और कमजोरियों है; मेरी मजबूत इच्छा शक्ति ही मेरा सबल पक्ष है और मैंने अपनी क्षमताओं को कभी भी नजर अंदाज नहीं किया. मुझे लगा कि जब सिविल सेवा परीक्षा में पाठ्यक्रम का स्तर स्नातक स्तर के समकक्ष है तो मुझे सफलता की संभावना के बारे में बहुत ज्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए. स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद, मैंने महसूस किया कि मैं यह कर सकता हूँ और इस विचार के साथ ही मैंने सिविल सेवा परीक्षा में शामिल होने के बारे में सोचा. मैंने हमेशा मानक पाठ्य-पुस्तकों में विश्वास रखा है और जो पढ़ा, सब समझने की कोशिश की न कि रटने में. मैंने सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी की शुरूआत इस आशा के साथ की, कि केवल उच्च प्रयास ही मुझे वांच्छित लक्ष्य तक पहुँचा सकता है. लेकिन, यह निर्णय इतना आसान नहीं था जितना मैं सोच रहा था; इस परीक्षा हेतु संसाधनों की कमी और इसके साथ जुड़ी अनिश्चितताओं ने मुझे इसके बारे में पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया. उस समय मैं असहाय था और कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण मुझे सिविल सेवा परीक्षा में शामिल होने की योजना को स्थगित करना पड़ा.

इसी बीच, 2007 में मेरी शादी हो गई और मेरी एक बेटी भी है अब 5 साल की हो गई है. मैंने अपने परिवार को पूरा समय दिया और बदले में, उनसे भी भरपूर प्यार, स्नेह और सबसे महत्वपूर्ण मानसिक शांति मिली जिस कारण एक बार फिर से मैं आगे की सोच रख पाया और अपनी नियती को पाने निकल पड़ा. किसी भी अन्य युवा की तरह, मेरा भी पहला उद्देश्य जीवन में स्थिरता की खोज रही और निरंतर प्रयासों के साथ इसमें मुझे सफलता भी मिली और 2010 में मैं एस.एस.सी. (स्नातक स्तर) परीक्षा में चुना गया और सौभाग्य से केंद्रीय सचिवालय, नई दिल्ली में पोस्टिंग मिल गयी. ईश्वर की कृपा से सरकारी सेवा और शादी के बाद मैं जीवन में व्यक्तिगत परिस्थितियाँ भविष्य के सुख का दरवाज़ा खोलती नजर आयीं.

कहते हैं कि जब कुछ अच्छा होना होता है तो लगभग सभी बातें एक के बाद एक सही घटनी शुरू हो जाती हैं. इसी क्रम में मेरी पत्नी में इस परीक्षा के प्रति अधिक झुकाव था और उन्हें लगा कि मैं यह कर सकता हूँ. सिविल सेवा परीक्षा में प्रयास करने के लिए उन्होंने मुझे निरंतर प्रोत्साहित किया जिस कारण मैं अपने कैरियर गंतव्य के बारे में गंभीर हो गया. दिल्ली, सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए केंद्र रहा है, और यहाँ मुझे सब मिल गया जिसकी मुझे अपनी तैयारी की योजना के अनुरूप जरूरत थी. पुस्तकें, अध्ययन सामग्री, मार्गदर्शन, और सही सलाह – जिन सब ने मेरी सफलता में बहुत योगदान दिया है.

सिविल सेवा परीक्षा 2011 में पहले प्रयास में मैंने प्रारंभिक परीक्षा पास की लेकिन, आगे नहीं जा सका. सिविल सेवा परीक्षा 2012 में पिछले प्रयास में मुझे 665वाँ रैंक मिला और भारतीय राजस्व सेवा (आयकर) मिल गयी और अब, तीसरे प्रयास में, आई.ए.एस. का पद पाने की आशा से बड़ी राहत महसूस कर रहा हूँ.

मेरे एक प्रश्न के जबाव में कि आपका आदर्श कौन है ? संतोष ने कहा कि मैं स्वयं अपना आदर्श हूँ. आशावादी हूँ. कर्म को प्रधान मानता हूँ. इसीलिए सफल हुआ हूँ. 

राजीव पाठक
09910607093

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