अपने अन्दर नेता बनने की इक्षा समुद्र में उठाने वाले ज्वार-भांटा के तरह हर पूर्णिमा-अमावस की तरंगों से कम नहीं होती होंगी, यदि हम हिंदी ब्लागिंग में सक्रिय हैं | हिंदी ब्लागिंग जगत का पूर्णिमा और अमावस कभी भी हो सकता है , जब दुबे जी और चौबे जी की इक्षा हो | पिछले दिनों चौबे जी का समर्थन किया हुआ एक पत्र दुबे जी ने मेल से भेजा | बड़ी प्रशन्नता हुई | वही ज्वार-भांटा जैसा उमंग | दुबे जी ने लिखा " प्रिय पाठक जी, सादर ............| वैसे तो हम सब दिन में कई बार लाइक कमेन्ट और सेयर करने हेतु एक दुसरे से बात कर ही लेते हैं, लेकिन कुछ बात ओफिसियल जैसा दिखना चाहिए इसीलिए यह मेल आपको भेजा है | चौबे जी,शर्मा जी,वर्मा जी,गुप्ता जी और झा जी के बहुत कहने पर हमने एक सम्मलेन करने का निर्णय लिया है | हम सभी ब्लागर एकमत होकर किसी विषय पर लिखें और सामाजिक-राजनीतिक मुद्दे पर एकमत रहें, यही अपना उद्येश्य है | अपने को बड़ी प्रसन्नता हुई कि कहीं तो मंच,माला और माइक का साथ मिलेगा | विचारों के ज्वार-भांटा में एक विचार ऐसा आया कि दुबे जी से पहले ही पूछ लूँ कि मुझे कोई भाषण-वाषण तैयार करके आना है क्या ? यह विचार इसलिए, क्यों कि मेरे लिए भी कोई बड़ा पद दुबे जी ने रखा होगा और उसकी जब घोषणा होगी तो मेरा मान-सम्मान होगा और उसके बाद दो शब्द तो बोलना पड़ेगा न ! पूछना कुछ ठीक नहीं लगा, सो दुबे जी के आदेश मात्र को सम्मान मानकर निश्चित-समय और स्थान पर पहुँच गया | मन गदगद हो गया | सबका दर्शन हुआ | तिवारी जी को तो अभी तक ब्लॉग के फोटो में ही देखा था और उनकी लेखनी पढ़ी थी, लेकिन सम्मलेन में पहुंचकर पता चला कि तिवारी जी खुद काम लिखते हैं, कट-कापी-पेस्ट ज्यादा करते हैं | तिवारी जी के इस सच्चाई का पता कई लोगों को चला | रायपुर,भोपाल,पटना,दिल्ली,लखनऊ सब जगह से लिख्खाड़ बंधू पहुंचे | इसीलिए इसका नाम अखिल भारतीय कुशाग्र बुद्धि ब्लागर सम्मलेन रखा गया | एक सवाल समझ से बाहर हो रहा था कि इनका अखिल भारत इन्ही पाँचों राज्यों को मिलकर है तो भारत के अन्य क्षेत्रों के हिंदी ब्लागरों का प्रतिनिधित्व कैसे होगा ! अपने दिमाग में भी कुछ ज्यादा सवाल आता है | छोड़ो इन सब बातों को अपना पद मिल जाय मंच-माला-माइक और दो शब्द रखने का समय | बिना मतलब की बातों में कौन पड़े | कोई शुल्क नहीं, आने-जाने का टिकट पहले से दिया जा चुका था और व्यवस्था टॉप | सम्मलेन का श्री गणेश और इतिश्री भी हो गया | आखिर दुबे जी ने हमें बुलाया क्यूँ था ? जब अपना कोई स्थान ही नहीं है यहाँ ! मन शांत किया और वहीँ प्रण किया भई अब अपने प्रयाश से एक सम्मलेन करना है | अगली बार अपन भी वैसा ही किया जैसा बाकियों ने अपने साथ किया था | स्थानीय पार्टी ने अपने को बड़ा प्रभावी व्यक्ति माना | सम्मलेन का सारा खर्च मिल गया | अब अपना ब्लाग भी छपता है | लेकिन बिरादरी के इस व्यवस्था को आगे बढ़ाने में बड़ा मजा आता है | अपने तरह का यही एक ऐसा चाकरी है जिसमें परमानन्द मिलता है | ऐसा बर्मा जी और कई कुमार जी भी कहते हैं | जो नहीं कहते वो भी मन ही मन इसकी पुष्टि करते हैं | हिंदी ब्लागिंग अमर रहे |
राजीव पाठक
खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है
जवाब देंहटाएंजो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन
राग है, स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है,
पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी
किया है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
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हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर
ने दिया है... वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.
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