गुरुवार, 16 अगस्त 2012

जहाँ स्वतंत्रता दिवस का मायने बदल जाता है !



आज 15 अगस्त है.लालकिला फिर से सजा है .....दिल्ली में पतंगे उड़ रही हैं ...देश भर में जस्न है ...प्रधानमंत्री लालकिला से भारत के बुलंदी के कसीदे पढ़ें हैं .....लेकिन एक और भारत है जो कहीं कराह रहा होगा..दुबका होगा....डरा और सहमा भी होगा....क्यों कि 15 अगस्त उसके लिए मुसीबत लेकर आता है |
जी, बात पूर्वोत्तर भारत की | ये अगस्त शुरु होते हीं.....यहाँ सब कुछ सामान्य नहीं लगता. गुवाहाटी से आगे जाने वाली सभी ट्रेने सूरज की रौशनी में ही चलती है...कई ट्रेने 15 अगस्त तक के लिए निरस्त कर दी जाती है. रेल कर्मचारियों से पूछने पर पता चलता है कि ये सामान्य बात है..हर साल होता है..सो इस बार भी हो गया. मैंने पूछा कि किसी उग्रवादी संगठन का धमकी है क्या?...जबाब मिला नहीं...अब आने ही वाला होगा....इसलिए हम पहले ही सचेत हैंये हाल कामो-बेश पूरे पूर्वोत्तर का है....बसे बंद...दुकाने बंद.......पट्रोल पम्प बंद...... क्यों कि 15 अगस्त आने वाला हैसमझना मुस्किल हो जाता है कि 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस है या शोक दिवसबंद देने वाले कौन है, ये सरकार भी जानती है | लोगों को भयभीत करने का मूल मकसद देश के प्रति अविस्वाश पैदा करना है...भारत सरकार से ज्यादा सामर्थ्य और विदेशी सहायता के बल पर खुद को प्रभावी साबित कर सके, इसीलिए यह खेल चलता है | हल में हुए कोकराझार दंगा, उसके प्रतिक्रिया में मुंबई के आज़ाद मैदान का वह खूंखार देशद्रोह का स्वरुप, मणिपुर में तिरंगा फहराते समय ही उग्रवादियों द्वारा किया गया आज का विस्फोट, असम और अन्य जगहों पर पाकिस्तानी झंडा लहराया जाना इसका प्रमाण देता है | यहाँ बच्चे अपने माता-पिता से पूछते है कि दिल्ली के लालकिला जैसा हमारे स्कुल में कार्यक्रम क्यों नहीं होता....पिता जी जवाब देते है बच्चे वो दिल्ली है.....यह दिल्ली नहीं हैघरों में सहमे लोग भगवान से प्रार्थना करते है कि 15 अगस्त सकुशल बीत जाय | जरा सोचिये स्वतंत्रता का मायने इनके लिए क्या है !
लेकिन पूर्वोत्तर का एक और चेहरा है जो आपको अरुणाचल में दिखेगा | 15 अगस्त यहाँ वैसे ही मानता है जैसे दिल्ली में..., बल्कि कई मायनो में उससे भी बेहतर...स्कूली बच्चे एक दिन पहले अपने स्कुल और आस-पास कि सफाई करते है. पर्व कि तरह सजाया जाता है.और उत्साह पूर्वक स्वतंत्रता दिवस मनता हैअरुणाचल प्रदेश के इस अनुकूलता का राज है...घुसपैठ का होना..तथा लोगों में हिंदी के प्रति स्नेह....भारतीय सेना की पहुँच और सेना के प्रति स्थानीय लोगों का सम्मान, देश कि समस्याओं के साथ एक मत | यही कारण है कि चीन के बने हुए सामान का सबसे ज्यादा विरोध अरुणाचल में है | चीन के नीतियों कि भर्त्सना सबसे अधिक अरुणाचलवासी ही करते हैभारत कि स्वतंत्रता अक्षुण रहे इसके लिए घुश्पैठ रोकना होगा | घुश्पैठियों को वोट के लालच में पनाह देने वाले नेताओं को सबक सिखाना होगा, और देश कि जनता को एक जुट होना होगा | तभी स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लालकिले के प्राचीर से दिया गया राष्ट्र के नाम संबोधन सही मायने में राष्ट्र के नाम होगा |

( अगस्त २०१० को खबरिया पर प्रकाशित एक आलेख से साभार

राजीव पाठक 
+91 9910607093

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