बुधवार, 21 मार्च 2012

बिहार के विकास की रफ़्तार


पिछले एक साल से बिहार की कई घटनाओं की स्मृति छाया मेरे मन में जिवंत है | ये घटनाएँ बिहार के विकास और उसके हक़ीकत के लिए आईने का काम कर सकती है | अगर आपको भी बिहार के बदलाव की अस्लियत जानने का मन हो तो कभी बिहार से आने-जाने वाली किसी भी ट्रेन के स्लीपर या जेनरल डब्बे में कुछ सौ किलोमीटर की यात्रा करके देखिएगा, बहुत कुछ समझ में आ जायेगा |
           बीते जनवरी मास के अंत में मुझे बिहार से दिल्ली तक का सफ़र बिना आरक्षण के ही करने का मन हुआ | एक सज्जन ने सुझाव दिया " भैया जी काहे टेंसन ले रहे हैं....इस महिना इधर से जाने में जादा भीड़ थोरे न रहता है....आप राजेंदर नगर से जनसाधारण पकड़ लीजिये.फस्कलास है...आप सूत के जाइयेगा दिल्ली तक...."| मेरे मन में एक हिम्मत आई | भले आदमी ने सही जानकारी दी...मै  पटना के राजेंद्र नगर स्टेशन पहुँच गया | भीड़ सही में कम थी, लोगो के मुहं से भी यही सुनाने को मिला |
                    मै तो जानबूझकर जनसाधारण में चढ़ा था, बहुत कुछ जानना था बदलते बिहार के बारे में, सो मैं एक अच्छा श्रोता बना रहना ही श्रेयस्कर समझा | टिकट लिया और एक सीट पर जा बैठा | ट्रेन खुल गई .....बस कुछ ही मिनट बाद अगला स्टेशन पटना जंक्सन है | एक भाई साहब अपने सामान  को पूरे  सीट पर  पसार रहे हैं, ताकि पटना में कोई सीट की मांग करे तो वो कह सकें की 'कोई बैठा है' | मुझसे भी एक भाई साहब बड़ी चेतावनी के स्वर में बोले " .........फैल से बैठ जाइये .......न त पटना में एतना आदमी चढ़ेगा कि आपको ही धकेल के सीट से नीच्चा गिरा देगा...." | मै अपनी मुस्कराहट को रोक न सका, लेकिन सलाह मान लेना उचित समझा | गाड़ी पटना स्टेसन पहुंची ....थोड़ी बहुत धक्का-मुक्की के बाद सब लोग चढ़ गए | इस गाड़ी के हिसाब से सामान्य से कम परन्तु अब सीट से लोगो की संख्या ज्यादा हो चुकी है | बीस-पच्चीस लोग थे बांकी सबको बैठने भर की सीट मिल चुकी थी | कोई गरमा-गरमी का माहौल नहीं है, न हीं ''देख लेंगे - दिखा देंगे'' जैसा किसी शब्दावली का प्रयोग ही सुनने को मिला, बल्कि कुछ लोग स्वेक्षा से जगह बनाकर खरे लोगों में से एक दो को बिठा ले रहें हैं | खड़े लोगों में से ज्यादा संख्या औरतों की थी | मुझसे भी रहा न गया | मैंने एक वरिष्ठ नागरिक के श्रेणी में आ चुकी महिला को आवाज़ देकर अपने सीट पर बैठने को कहा, तो उनके साथ एक और महिला साथ आ गईं......उन्होंने मुझे थोडा और खिसकने का इशारा करते हुए कहा '........हो जायेगा एरजेस्ट' | हमने उन्हें भी बिठा लिया | हम एक बर्थ पर छः लोग हो गए |
        गाड़ी अपने रफ़्तार से दौरने लगी | पराठे....आचार....दाल पूरी और लिट्टी का सुगंध अलग-अलग पोटलियों से आ रही थी | खाते-खाते एक बात पर ध्यान केन्द्रित हो गया कि इस अनारक्षित डिब्बे में औरतों कि संख्या ज्यादा क्यों है? मैंने अपने पड़ोस में बैठी आंटी जी से पूछा ही था, कि आप लोग कहीं एकसाथ जा रहीं है क्या? बगल वाले सीट से आवाज आई " हाँ बाबु काल माघी पूर्णिमा बा....हमनी के गंगा नही खातीर त्रिवेणी (इलाहाबाद) जातानी ..." | भोजपुरी में ही उन्होंने अपनी बातें कहना शुरू किया | सौभाग्य से मैं सब कुछ समझ रहा था | बात-चीत आगे बढ़ी तो कुछ कम उम्र कि दूसरी महिला जो साथ में आईं थी, उन्होंने बताया कि वो आँगनबाड़ी सेविका हैं | मेरी उत्सुकता और बढ़ी, मैं उनसे कई सवाल करता रहा | उनके कई जबाब में पहला वाक्य था ".........अब पाहिले बला बात न न है |" इस वाक्य का मतलब उनके आगे के बातों से पता चला | उन्होंने बताया कि अब हम लोगों को बाहर-भीतर निकलने में कोई डर नहीं होता...मेला-ठेला, हाट-बाज़ार हम खुद चले जाते हैं...घर के लोग भी अब जाने देते हैं | उनके गाँव में अभी भी स्कूल नहीं है लेकिन उनकी आठवी कक्षा में पढ़ रही बिटिया साईकिल से दुसरे गाँव के स्कूल में जाती है | मेरे ये पूछने पर कि इस यात्रा में घर के लोग (पति) साथ में आये है या नहीं ? आंटी ने अपना जबाब वहीँ से शुरू किया ......कि अब पहले वाली बात नहीं है ! हम सुरक्षित हैं इसका भरोषा तो घर वाले को है हीं, साथ ही हम अपनी बात भी अब मनवाने में सक्षम हैं | उनके ही साथ आई एक नवेली सी दुल्हन शिक्षामित्र हैं | शादी के अगले ही साल ससुराल के ही प्राथमिक विद्यालय में उनका चयन शिक्षामित्र के रूप में होगा ऐसा उन्होंने सोचा भी नहीं था | " इंटर कि पढाई तो की, लेकिन जीवन भर चूल्हा फूकेंगे ऐसा ही लगता था,हमारा तो भाग्य ही बदल गया...." ये शब्द है शिक्षामित्र बन चुकी देवी का | सड़कों के अच्छे हो जाने और बिजली के आ जाने से उनका गाँव और सुन्दर हो गया है, ये जिक्र भी बातों में ही पता चला |
                 बात करते काफी देर हुई तो मेरे सामने वाले सीट पर बैठीं एक अन्य महिला से रहा नहीं गया | उन्होंने भी कुछ आप बीती सुनाई " बाबु हमनी के त बुझाता कि कुछ लोग  नीति-नियम के डर से काम करsता.....हुनकरा के नियति अभी नइखे बदलल हs ....| आगे अपनी दुखरा सुनाते हुए उन्होंने कहा कि सरकार के तरफ से हर बी.पी.एल. परिवार को जो शौचालय मिलना था उसमें वार्ड मेंबर से लेकर ऊपर तक सबने अपनी जेब गरम की है | पंचायत समिति ने उनसे पाँच सौ रूपया भी ले लिया साल भर से ज्यादा हो गया बीस ईंट गिराने के बाद कोई पूछने भी नहीं आया | पंचायत में स्वास्थ्य केंद्र बनना है, इसकी चर्चा ही सुन रहे है....कुछ महीने पहिले तक तो डाक्टर नई बहु का हाल-समाचार लेकर जाती थी तो भरोषा था प्रसव के दौड़ान कहीं और नहीं भागना पड़ेगा.लेकिन वह भी नियमित नहीं आती | वृद्धा पेंशन और विधवा को मिलने वाली सहायता हो या अन्य सरकारी राहत, सबमें भाई-भतीजा चलता है | बड़े गुस्से के स्वर में उन्होंने कहा कि सरकार को इन भ्रष्ट लोगों कि तो पहले खबर लेनी चाहिए | इतने के बावजूद भी नीतीश बाबू  अपने तरफ से बिहार को सबसे आगे ले जाने में लगे है ये वाक्य भी उनके ही मुंह से निकला | मैं आंगनबाड़ी वाली आंटी से उनका नाम जानना चाहा लेकिन बगल में बैठी बड़ी आंटी ने अपना अभिभावकत्व का निर्वहन कर दिया, उन्होंने इशारे में ही उन्हें नाम न बताने कि सलाह दे दी | मुझे अंदाजा हो गया कि उन्होंने ऐसा क्यों किया ! उन्हें श़क हो चुका था कि मै अकारण ही उनसे इतनी बातें नहीं कर रहा था | खैर, मेरा तो उद्येश्य पूरा हो चुका था |
                   रात के लगभग तीन बजे गाड़ी इलाहबाद में रुकी, वे सभी वहीँ उतार गईं | लेकिन मेरा सफ़र दिल्ली तक का था  | बर्थ पर अब लेटने भर की जगह बनाई जा सकती थी | मै अपनी कमर सीधी करने के लिए लेट गया | गाड़ी फिर अपने रफ़्तार से चल पड़ी | मेरे कान में बिहार के विकास की यह रफ़्तार और शताब्दी वर्ष पर विकसित बिहार बनाने के करोडो हौसला भरे सपनों के पंखों की फरफराहट गूंज रही थी | डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने अपने पुस्तक 'अदम्य साहस'में लिखा है कि "जो सपने देखतें हैं और उन्हें सच करने की हिम्मत रखते हैं उन्हें दुनिया सम्मान और स्नेह देती है " यह पंक्ति बिहार की जनता और सरकार के जज्बे को संबल प्रदान करती है |

राजीव पाठक
पत्रकारिता में शोध छात्र
+91 9910607093

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